Saturday, March 15, 2025
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Three Language Policy in Tamil Nadu Stalin Government Unacceptable Hindi Language

तमिलनाडु में हिंदी भाषा का विरोध हो रहा है वहां के लोग हिंदी में बात करने वालों से तमीज से पेश नहीं आते हैं। तमिलनाडु में DMK पार्टी के कार्यकर्ताओं और छात्र शाखा ने सरकारी दफ्तरों में तोड़फोड़ करके साइन बोर्ड पर लिखे हिंदी शब्दों पर कालिख पोती। “MK Stalin भाषा युद्ध के लिए तैयार, बुलाई 40 दलों की सर्वदलीय बैठक”

Tamil Nadu में Three Language Policy पर बवाल – Hindi के खिलाफ क्यों भड़की DMK?

तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन और उसकी DMK पार्टी ने नेताओं और कार्यकर्ताओं का सनातन विरोधी चेहरा पहले ही सामने आ चुका है। यह वही पार्टी है जिसने सनातन धर्म को डेंगू मलेरिया की तरह बताया और उस धर्म को खत्म करने की बात कही थी। “इस डीएमके पार्टी के सांसद दयानिधि मारन ने कहा था कि हिंदी भाषा बोलने वाले तमिलनाडु में टाॅयलेट साफ करते हैं।” 

भारत 50 फीसदी से अधिक लोगों की मातृभाषा हिंदी ही है वहीं देश के 12 राज्य ऐसे हैं जिनमें 90% प्रतिशत लोग हिंदी बोलते हैं।

तमिलनाडु में भाषा युद्ध की वजह

दरअसल तमिलनाडु में हिंदी भाषा का विरोध वहां की राज्य सरकार के इशारों पर हो रहा है, क्योंकि तमिलनाडु के मुख्यमंत्री मुथुवेल करुणानिधि स्टालिन (MK Stalin) ने कहा, कि किसी अन्य भाषा को अपनी मातृ भाषा तमिल पर हावी नहीं होने देंगे और न ही नष्ट करने की अनुमति देंगे। वहां के सीएम बताया 1965 से ही उनकी डीएमके पार्टी ने हिन्दी से अपनी मातृभाषा तमिल की रक्षा के लिए अनेकों बलिदान दिये हैं। पार्टी के सदस्यों का खून समाया हुआ है। स्टालिन हम भाषा युद्ध के लिए तैयार हैं। वहां पर डीएमके सरकार 3 भाषा नीति का विरोध कर रही है वहां की सरकार का कहना है कि तमिलनाडु भाषा तमिल और अंग्रेजी से संतुष्ट हैं। अब केंद्र सरकार को हिंदी नहीं थोपने दिया जायेगा।

मातृ भाषा की रक्षा करना हमारे खून में है ‘DMK सरकार’

हम तीन भाषा नीति का विरोध कर रहे हैं मातृभाषा तमिल को बचाने के लिए हमारी पार्टी ने 1965 से ही अनेकों कुर्बानियां दीं हैं। हिंदी से तमिल भाषा को बचाने का इतिहास रहा है। डीएमके की छात्र इकाई ने हिंदी विरोध 1971 में कहा था हम बलिदान देने के लिए तैयार हैं। मातृभाषा की रक्षा करना उनकी पार्टी के सदस्यों के खून में समाया हुआ है।

DMK Protest against NEP, Student Organisations Old Time 1965

भाषा विवाद कै बीच MK Stalin ने 40 दलों की सर्वदलीय बैठक बुलाई

देश के चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड लगभग 40 दलों की बैठक बुलाई गई है राजनीतिक मतभेदों को भुलाकर सभी दलों को एकजुट करने के लिए स्टालिन ने यह बैठक बुलाई है। “स्टालिन के इस बयान पर बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अन्नामलाई प्रतिक्रिया दी और कहा कि स्टालिन को अब परिसीमन के बारे में काल्पनिक डर सता रहा है जिससे वह कहानियां बना रहे हैं।” क्योंकि राज्य के लोगों ने तीन भाषा नीति पर उनके तर्कों को खारिज कर दिया। साथ ही अन्नामलाई ने संकेत दिया कि वह सर्वदलीय बैठक में शामिल नहीं होंगे।

M. K. Stalin
पहला हिंदी भाषा विरोधी आंदोलन

सन् 1937 में मानवतावादी चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने मद्रास (चेन्नई) प्रांत में हिंदी को लाने के समर्थन में थे. सी “राजगोपालाचारी ने अपने प्रांत में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए स्कूलों में हिंदी की शुरुआत की थी। द्रविड़ कड़गम ने इसका भारी विरोध किया था।” और हिंसक झड़पों में दो लोगों की मौत हुई थी। उस द्रविड़ कड़गम का संस्थापक हिंदुत्व और ब्राह्माणवादी विचारधारा विरोधी ‘पेरियार’ था और उसके सहयोगी अन्नादुरई थे।

आज से 60 साल पहले भड़का था ‘हिंदी विरोधी आंदोलन’

हिंदी थोपे जाने खिलाफ यह विरोध प्रदर्शन था जिसके बाद भारत ने अपनी भाषा नीति को बदलकर अंग्रेजी भाषा को सहायक भाषा का दर्जा दिया गया था। यह हिंदी भाषा आंदोलन ‘पंडित जवाहर लाल नेहरू’ और ‘लाल बहादुर शास्त्री जी’ के समय में गैर हिंदी भाषी राज्यों में भड़का था।

Pt. Jawaharlal Nehru and Lalbahadur Ji

उस समय तमिलनाडु में आंदोलन की अगुवाई डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के संस्थापक कांजीवरम नटराजन अन्नादुराई कर रहे थे दूसरी बार साल 1965 में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के प्रयास हुए, तब गैर हिंदी भाषी राज्यों में माहौल बिगाड़ने लगा। वहां के नेता सीएन अन्नादुराई ने गणतंत्र दिवस से पहले 25 जनवरी को लोगों को अपने अपने घरों पर काले झंडे फहराने को कहा था।

Periyar and C. N. Annadurai

तब तमिलनाडु राज्य में हजारों लोगों गिरफ्तार किये गए। उधर मदुरई चल रहे हिंदी भाषा को खिलाफ विरोध प्रदर्शनों ने और भी हिंसक रूप ले लिया और वहां के स्थानीय ‘कांग्रेस दफ्तर’ के सामने 8 लोग जिंदा जला दिया गये।

इसके साथ ही 25 जनवरी की तारीख को बलिदान दिवस के रूप में जाना गया। इन विरोध प्रदर्शनों ने इतना भयावह रूप लिया कि “हिंसक झड़पें तकरीबन दो हफ्ते तक चलती रहीं। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार इन झड़पों में करीब 70 लोग मारे गए थे। उस वक्त केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी।” विरोध प्रदर्शनों के परिणामों को देखते हुए प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आश्वासन दिया और सूचना एवं प्रसारण मंत्री इंदिरा गांधी ने राजभाषा संसोधन अधिनियम में संशोधन करके अंग्रेजी को तमिलनाडु की सहायक राज भाषा का दर्जा दिया था।

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